Saturday, July 12, 2014

Story Of Officers Who Resigned

A letter to CMD by a former DRO

(You should try to read to know how an officer works under pressure and signs blindly on papers. Majority of officers have to sign where his or  her bosses ask for )

By-----Ram Chandra Gurjar <allrounderram@gmail.com>Tue, 

Jun 17, 2014 at 12:27 PM
To: cmd@bankofbaroda.com
Cc: gm.hrm.bcc@bankofbaroda.com


आदरणीय CMD महोदय,


सबसे पहले मैं अपना औपचारिक परिचय देना चाहूंगा . मेरा नाम राम चन्द्र गुर्जर है . मैं बैंक ऑफ़ बरोदा परिवार में १५ जुलाई 2013 को DRO के रूप में शामिल हुआ . क्षमा चाहूंगा कि इस पत्र में इसके अलावा और कुछ भी औपचारिकता नहीं होगी क्योंकि मैं समझता हूँ कि अभिभावक और संतान में किसी तरह की कोई औपचारिकता नहीं होती.साथ ही मैं क्षमा चाहूंगा सीधे आपको पत्र लिखने का दुस्साहस कर रहा हूँ. क्योंकि पदसोपानिक स्तर में सबसे छोटा अधिकारी सबसे बड़े अधिकारी को पत्र लिखे ये "सिस्टम " या "प्रोटोकॉल " विरुद्ध है , लेकिन मेरा मानना है कि जब मन कुंठित हो ,संकट गंभीर हो तो हम सीधे मंदिर में भगवान से प्रार्थना करते हैं पुजारी से नहीं . इसलिए मैंने ये कोशिश कि हैं . आशा है कि आप भी इसे इसी भावना के साथ स्वीकार करेंगे . बैंक ऑफ़ बड़ौदा जैसी विश्वस्तरीय बैंक में इसके भविष्य निर्माता के रूप में जुड़ने वाले DRO के साथ किस तरह का व्यवहार होता है ,ये मैं आपके साथ बाँटना चाहूंगा .


IBPS की कठिन परीक्षा एवम गला काट प्रतिस्पर्धा के बाद 15 जुलाई को मैंने बैंक ऑफ़ बड़ौदा इस उम्मीद के साथ ज्वाइन की थी कि बैंकिंग सेक्टर में करियर विकास कि असीम सम्भावनाओ में मैं अपना बेहतर भविष्य बना पाउँगा . ट्रेनिंग के दौर में जब बैंक ऑफ़ बड़ौदा को जानने का मौका मिला तो सैद्धांतिक स्वरुप बेहद आकर्षक लगा. लगा मानो इसी आर्गेनाईजेशन की मुझे जरुरत थी . लेकिन जैसे जैसे आगे बढ़ा यथार्थ के धरातल के कटु अनुभवों का सामना होना शुरू हुआ . लेकिन जीवन की यही सच्चाई है ,ट्रेनिंग के कुछ कटु अनुभवों को भूलकर मैं दुगुने उत्साह के साथ आगे बढ़ा . मुझे नसीराबाद ब्रांच अजमेर रीजन में पोस्टिंग मिली .लेकिन वही से मेरी लाइफ में बुरे दिन शुरू हो गए . अपनी ही एक सीनियर लेडी अफसर की कार्यशैली और व्यवहार ने मुझे इस हद तक परेशान किया कि मुझे मजबूरन बैंक छोड़ने का फैसला लेना पड़ा .और कृपया इसे एक व्यक्तिगत उदहारण ना समझे.सिर्फ एक घटना के आधार पर मैं बैंक ऑफ़ बड़ौदा जैसी संस्थान पर ऊँगली नहीं उठा सकता . इस पत्र को लिखने का साहस ही इसलिए जुटा पाया क्यूंकि मेरे साथी DROs का भी कुछ ऐसा ही अनुभव रहा .इसलिए पिछले 6 महीनो के अनुभव के आधार पर मैं अपने बाकि DRO साथियो की तरफ से कुछ कॉमन महत्वपूर्ण बिन्दुओ को आपके साथ बाँटना चाहूंगा.


1.हम DROs से जबरदस्ती लोन डाक्यूमेंट्स सहित बैंक में बहुत से कागजो पर हस्ताक्षर करवा लिए जाते हैं जिनमे से अधिकांश का हमे ज्ञान तक नहीं होता .यहाँ तक कि बिना इंस्पेक्शन किये हुए भी इंस्पेक्शन रिपोर्ट्स पर हस्ताक्षर करवा लिए जाते हैं .सीनियर सही ही करवा रहे होंगे ये मानकर हम हस्ताक्षर कर भी देते हैं . लेकिन अब जब धीरे धीरे बाते समझ में आई तो पता चलता हैं कि सीनियर लोग अपनी नौकरी बचाने के लिए हमे ढाल के रूप में काम में लेते हैं .


2.बैंक के सैद्धांतिक और व्यवहारिक आदर्शो में कोई तालमेल नहीं . HR पॉलिसीस के मामले में तो मैं इसे बिलकुल सही पाता हूँ . इसके उदहारण के तौर पर मैं आपको अपनी स्थिति से अवगत करवाता हूँ .


(i)मैं राजस्थान के चुरू जिले का निवासी हूँ . चुरू जिला बैंक ऑफ़ बड़ौदा के जोधपुर रीजन में आता हैं .मुझे मेरी पहली पोस्टिंग मेरे घर से करीब 350 किलोमीटर दूर दी गयी . इसमें बैंक का तर्क शामिल होता हैं कि अभी आप अविवाहित होते हैं इसलिए कोई समस्या नहीं हैं दूर पोस्टिंग में . मैं आपसे पूछना चाहूंगा क्या सिर्फ विवाहित व्यक्ति का ही परिवार होता हैं ? क्या अविवाहित व्यक्ति का जुड़ाव नहीं होता अपने माता -पिता से ? बैंक की 6 दिन 10घंटे की बैंकिंग के बाद क्या अविवाहित व्यक्ति को भावनात्मक आराम की जरुरत नहीं होती ? मेरे जैसे कितने ही नए DROs 350 किलोमीटर से कहीं ज्यादा दूर पोस्टेड हैं अपने अपने घरो से .मैं नहीं कहता की हमे घर में पोस्टिंग चाहिए ,लेकिन कम से कम ऐसी जगह तो पोस्टिंग दीजिये ताकि वीकेंड पर तो घर जा सके . घर के पास रहेंगे तो बैंक के लिए बिज़नेस लाना भी आसान होगा .एक नए अनजान शहर में हम बैंक के लिए कितना बिज़नेस ला पाएंगे ?? रही बात अविवाहित व्यक्ति की तो विवाहित व्यक्ति के पास तो अपनी खुद की फैमिली हो सकती हैं लेकिन हमारे पास सिर्फ हमारे माता -पिता हैं .बर्थडे पर मेरे mata-पिता इतनी दूर से आये मुझसे मिलने ,बैंक से एक छुट्टी मांगी उस पर भी सुनने को मिला कि "Leave is not your right".तब लगा कि हम ही बेवकूफ हैं जो बैंक को दिन रात अपनी सेवा देने में लगे हैं .जब बैंक को हमारी भावनाओ का ख्याल नहीं तो फिर हम क्यू कहाजाता हैं बैंक के लिए वफादार बनने के लिए ??


(ii)बैंक में आने का समय तो निश्चित है लेकिन जाने का समय का कोई अता-पता नहीं . मानता हूँ कि बैंक में काम बहुत ज्यादा है ,लेकिन उससे कहीं ज्यादा अक्षमता/अकर्मण्यता और सीनियर लोगों की देर तक बैठने की आदत जिम्मेदार है .पिछले 21 दिनों से मैं अपनी ब्रांच के ऑपरेशन हेड का काम संभाल रहा हूँ और जो ब्रांच कभी रात 8 बजे से पहले बंद नहीं होती थी वो 5:30 से 6:00 बजे बंद हो जाती है . क्या बैंक की टाइमिंग को लेकर कोई नीतिगत निर्णय नहीं लिया जा सकता ? यहाँ तक कि रविवार को भी काम करने के लिए बुला लिया जाता है और क्यूंकि हम DROs हैं हमारी तो जैसे नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है आने की. रात 8 बजे तक काम करने के बाद घर पहुँच कर सोना और सुबह फिर काम पर लग जाना ,ये मुझे इंसान की नहीं मशीन की याद दिलाता है .


(iii) रीजनल ऑफिसो में जिन लोगों को नियुक्त किया जाता है उससे तो हम DROs बहुत ही निराश और कुंठित हैं. अपरिपक्व या अयोग्य लोगों की नियुक्ति की वजह से पूरे रीजन को परेशानी का सामना करना पड़ता है .अजमेर रीजनल ऑफिस का मेरा और मेरे साथियो का अनुभव बहुत ही ख़राब रहा है . क्या रीजनल ऑफिसो आदेश देने के लिए ही बने हैं ?? क्या One-Way conversation ही चलता है ??


3. अब मैं आपको मेरी और मेरे साथी DRO की 2 कहानियाँ सुनाता हूँ .मेरी ब्रांच में एक लेडी अफसर ने अपनेव्यवहार ने इस हद तक माहौल ख़राब किया कि बैंक और ब्रांच कि छवि ख़राब होने के साथ साथ ब्रांच में काम करने वाले लोगों का मनोबल गिर गया .मुझसे कहीं भी हस्ताक्षर करवाना , risky cheques जबरदस्ती मुझसे पास करवाना ,ब्रांच हेड का दिया हुआ काम अगर कर रहा होता तो मेरा नाम चिल्ला चिल्ला कर कस्टमर्स के सामने मुझे शर्मिंदा करना उनकी आदत सी बन गयी थी . इस हद तक मेरा नाम पुकारा गया कि मुझे अपने नाम से नफरत होने लगी थी . तेज गति और विभिन्न तरह के काम करने की मेरी क्षमता मेरे लिए अभिशाप बन गयी थी और उनके लिए अपनी कामचोरी को बढ़ावा देने का जरिया . इसकी शिकायत मैंने नवंबर में रीजनल ऑफिस में हुए DRO कॉन्क्लेव में भी की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ .यहाँ तक की मेरी काउंसलिंग करने की कोशिश भी नहीं की गयी .इसके बाद मेरा दिनों दिन मानसिक शोषण होता गया .और मैं हर दिन घुट घुट के जीता रहा . जनवरी मेंअपनी अंतिम ट्रेनिंग में जयपुर ट्रेनिंग सेंटर में मुझे कहना पड़ा की अगर वो लेडी मेरी ब्रांच में रहेगी तो मुझे मजबूरन बैंक छोड़ना पड़ेगा .तब मेरे रीजनल हेड और मेरे जोनल हेड तक बात पहुंचाई गयी .मुझे मेरे रीजनल हेड ने कुछ हद तक कन्विंस कर लिया . मुझे लगा कि समस्या अब तो समाप्त हो ही जाएगी .जब ब्रांच में आया तो उसका असर तो नजर आया लेकिन इस बार तरीका बदल चूका था मानसिक प्रताड़ना का .आख़िरकार मुझे बैंक छोड़ने का फैसला लेना ही पड़ा . 31 जनवरी को मैंने बैंक से इस्तीफा दे दिया .


दूसरी कहानी मेरे साथ ही ज्वाइन किये हुए DRO की है . उसने अजमेर रीजन की सांगानेर ब्रांच ज्वाइन की.उसके ब्रांच हेड उससे रोज रात 9-10 बजे तक काम करवाते और यहाँ तक कि संडे को भी ऑफिस आना पड़ता. यहाँ तक कोई परेशानी नहीं थी ,लेकिन उससे फर्जी इंस्पेक्शन रिपोर्ट साइन करवाना ,लोन्स डाक्यूमेंट्स सहित बहुत से सवेंदनशील डाक्यूमेंट्स पर साइन करवा लिए जाते और वो भी जबरदस्ती .उसने इसकी शिकायत उसी DROकॉन्क्लेव में की . नतीजा ये हुआ कि उसके ब्रांच हेड नाराज हो गए .उस DRO ने कुछ दिन बाद एक छुट्टी के लिए आवेदन किया और दुर्भावना वश ब्रांच हेड ने छुट्टी कैंसिल कर दी .तबियत ख़राब होने की वजह से DROअगले दिन ऑफिस नहीं गया और इसकी शिकायत ब्रांच हेड ने रीजनल ऑफिस में कर दी . और अब ताज्जुब करने वाली बात ये है की जो रीजनल ऑफिस हमारे द्वारा की गयी शिकायतों को सुनकर भी सोया रहा उसने इस बार कोई गलती नहीं की DRO को तुरंत कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया .और उसके कुछ दिनों बाद उसी DRO का ट्रांसफर अनुशासनहीनता का कारण देते हुए राजस्थान के दक्षिणी छोर के रीजन में कर दिया गया .अपने साथ किये गए पक्षपाती व्यवहार से hatas उस DRO ने बैंक से इस्तीफा दे दिया .


इन 2 कहानियों में रोचक बात ये रही कि एक जगह जहाँ सिर्फ ट्रांसफर कर देने से बैंक अपना एम्प्लोयी बचा सकता था ,वहां से कोई ट्रांसफर नहीं हुआ और दूसरी जगह बेवजह किये गए ट्रांसफर ने बैंक का एक एम्प्लोयी खो दिया .समझ में नहीं आता किस तरह के मापदंडो को अपना रहा है बैंक ?? किसको बचाना है किसको हटाना है ?? कुछ समझमें नहीं आता.मैं तो अपने आप को इन घटनाओ के बाद बैंक में सुरक्षित नहीं पाता . वही महिला अधिकारी ब्रांच से 300रुपये चुराती हुई cctv कैमरा में पकड़ी गयी लेकिन ब्रांच मैनेजर ने कोई करवाई तक नहीं की. कैसा माहौल बना रखा है बैंकमें.सर कृपया कुछ कीजिये.


इन 2 कहानियों के अलावा भी मेरे पास और कुछ कहानियाँ हैं लेकिन मैं अब उनपर न जाकर सिर्फ इतना जाननाचाहूंगा कि आंकड़ों और टारगेट के खेल में में इंसानियत को भुला चुके हैं . बैंक का हमे भविष्य कहा जाता है लेकिन बैंक ही अपने भविष्य को बचने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखता,ताज्जुब होता है .


एक अभिभावक होने के नाते मैंने आपके सामने मेरी भावनाओ को एक अबोध बालक की तरह कह दी . अब आप एक पिता के समान होने के नाते क्या निर्णय लेते हैं ये मैं आप पर छोड़ता हूँ . पत्र लिखने से पहले ही लोग कह चुके हैं कि बैंक 100 साल से ज्यादा समय से चल रहा है कोई फर्क नहीं पड़ने वाला . असर नहीं होगा ये सोचकर मैं सच कहने से अपने आप को रोक तो नहीं सका हाँ इसे भेजने में समय जरूर ले लिया. बैंक में मेरे आखिरी दिन ये पत्र लिखा लेकिन भेजआज रहा हूँ, इसके पीछे कारण वही 100 साल और असर न होने का तर्क था . मेरा ये पत्र बदलाव का एक जरिया बनेगा या फिर deleted items का एक हिस्सा .........ये वक्त बताएगा.
इतने धैर्य के साथ पत्र पढ़ने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .आपने अपना कीमती समय दिया उसके लिए शुक्रिया.
भवदीय
राम चन्द्र गुर्जर
भूतपूर्व DRO
EC No.102492

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